1. प्रागैतिहासिक काल
जिस काल के इतिहास का लिखित विवरण नहीं मिलता है, उसे ‘प्रागैतिहासिक काल’, जिस काल का लिखित विवरण मिलता है किन्तु उसे पढ़ा नहीं जा सकता उसे ’आद्य-ऐतिहासिक’ काल एवं जिस काल का लिखित साक्ष्य मिलता है उसे ‘ऐतिहासिक काल’ कहा जाता है।
मनुष्य की कहानी आज से लगभग दस लाख वर्ष पूर्व शुरू हुई थी, किन्तु होमोसेपियंस (ज्ञानी मानव) का प्रवेश इस धरती पर करीब 40 हजार वर्ष पूर्व हुआ।
पुरापाषाण कालीन मानव आखेटक (शिकारी) एवं खाद्य-संग्राहक थे उनके औजार पत्थरों के कोर एवं फ्रलैक प्रणाली द्वारा बनाये गये थे, जो सोहन नदी घाटी, सिंगरौली घाटी एवं बेलन नदी घाटी से मिले हैं। इस ी समय अग्नि एवं मृतक-संस्कार की परिपाटी प्रचलित हुई। भीमबेटका में मिली पर्वत गुफायें इसी काल से सम्बन्धित हैं।
मध्यपाषाणकाल में प्रयुक्त उपकरण बहुत छोटे होते थे, जिसे ‘माइक्रोलिथ’ कहा जाता है।
नवपाषाण काल में मानव खाद्य पदार्थों का उत्पादक बन गया। कोल्डीहवा से चावल एवं मेहरगढ़ (बोलन नदी के किनारे) नामक स्थान पर कृषि कर्म आरम्भ हुआ। इसी समय स्थायी निवास, पहिया, कुम्भकारी आदि का प्रमाण मिलता है। इसी काल में मानव द्वारा सर्वप्रथम ‘ताँबा’ ध ातु की खोज की गई।
भारत की आदिम जातियों को छः भागों में विभक्त किया जा सकता हैः नीग्रेटो, नार्डिक, प्रोटो-अस्ट्रेलायड, पश्चिमी ब्रेची सेफल, मंगोलायड एवं भूमध्यसागरीय (द्रविड़) ।
मृदभांड का प्राचीनतम साक्ष्य चोपानीमांडो से मिला है।
चिरांद (बिहार) से हड्डियों के औजार एवं बुर्जहोम से मानव के साथ कुत्ता दफनाने का अवशेष मिला है।
