6. हिन्दी की शब्द - सम्पदा
6. हिन्दी की शब्द - सम्पदा
भाषा की न्यूनतम इकाई को वाक्य कहा जाता है। वाक्य का निर्माण शब्द से होता है। वह ध्वनि समूह जिसका कोई अर्थ हो उसे ‘शब्द’ कहते हैं। किसी भी भाषा में प्रयोग किए जाने वाले शब्दों को ‘शब्द समूह’ कहते हैं। हर भाषा का अपना शब्द समूह है। हिन्दी भाषा में व्युत्पत्ति की दृष्टि से चार प्रकार के शब्द है तत्सम्, तद्भव, देशी ( देशज ) और विदेशी ( विदेशज ) ।
तत्सम् एवं तद्भव शब्द :
उन शब्दों को तत्सम् शब्द कहा जा ता है जो किसी भाषा को पूर्ववर्ती परम्परा से प्राप्त हों ओर दूसरी भाषा में जाने पर भी उनमें कोई परिवर्तन न हुआ हो, ऐसे शब्द हिन्दी में संस्कृत भाषा से ज्यों के त्यों ग्रहण कर लिए गए है। तत्सम् शब्दा शब्दों के मेल से बना है। तत् + सम् । तत् का अर्थ है उसके और सम् का अर्थ है समान ( उसके समान ) । इसलिए वे शब्द जो बिना किसी, ध्वनि या अर्थ परिवर्तन के हिन्दी में ज्यों के त्यों ग्रहण कर लिए हैं, वे तत्सम् शब्द कहलाते हैं, जैसे अक्षर तत्सम् है। हिन्दी निरन्तर समृद्धि ओर विकसित होती भाषा है। हिन्दी की नई शब्दावलियों में भी तत्सम् शब्दों की प्रमुखता है।
संस्कृत और हिन्दी का दोहरा एवं गहरा सम्बन्ध है। संस्कृत से पालि, पालि से प्राकृत, से अपभ्रंश से हिन्दी का विकास हुआ है। अतएव हिन्द ी संस्कृत भाषा की विकास परम्परा के कारण आई। हिन्दी से संस्कृत का प्रत्यक्ष सम्बन्ध भी रहा है। अतः हिन्दी ने सीधे ही संस्कृत का भाषा सम्पदा को स्वीकार कर लिया। यही कारण है कि हिन्दी का अधिकांश शब्दावली संस्कृत के तत्सम् और तद्भव शब्दों से बनी है ।
समय और परिस्थितियों के साथ - साथ तत्सम शब्दों में कुछ परिवर्तन भी होते रहे हैं, इससे कुछ शब्द बने हैं, जिन्हें ‘तद्भव’ ( तत् + भव । उससे उत्पन्न ) कहते हैं। भारतीय भाषाओं में ‘तत्सम्’ और ‘तद्भव’ शब्दों का बाहुल्य है। इसके अतिरिक्त इन भाषाओं के कुछ शब्द ‘देशज’ और अन्य कुछ ‘विदेशी’ हैं।
चूोंकि बिना तद्भव शब्द लिए तत्सम् शब्द के मूल स्वरूप का पता नहीं चलता, अतः तद्भव शब्दों के रूपान्तरण का परिचय भी तत्सम् शब्दों के साथ - साथ दिया जा रहे हैं
तत्सम | तद्भव |
कण्टक | कांटा |
कपोत | कबूतर |
कपाट | किवाड़ |
कर्ण | कान |
कुष्ठ |